स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
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नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
अर्थ: हे प्रभू आपने तुरंत तरकासुर को मारने के लिए षडानन (भगवान शिव व पार्वती के पुत्र कार्तिकेय) को भेजा। आपने ही जलंधर (श्रीमद्देवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान शिव के तेज से ही जलंधर पैदा हुआ था) नामक असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता है।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि more info आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन Shiv chaisa सब मिलि तुमहिं जुहारी॥